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________________ (ग) वास्तव में धार्मिकता तथा नागरिकता दोनों के लक्षण एक दूसरे से बहुत कुछ मिलते जुलते हैं। नागरिकता का मूल सिद्धान्त है . "नगर में सुख से रहो और दूमरों को सुख से रहने दो।" अर्थात् अपने नागरिक अधिकारों का उपभोग. करते हुए दूसरे के नागरिक अधिकारों में बाधा मत डालो। जैन धर्म के अहिंसा, सत्य, अचौर्य, स्वदारसंतोष तथा परिग्रहपरिमाण यह पांचों अणुव्रत ही नागरिक में भी होने आवश्यक हैं। यह पांचों अणुव्रत जिस व्यक्ति में होंगे वह निश्चय से उच्चकोटि का नागरिक तथा उच्चकोटि का धार्मिक ब्यक्ति होगा। __ जैन धर्म गृहस्थों के लिये इन्हीं पांचों अणुव्रतों पर युग की आदि से बल देता आया है। इसीलिये प्रायः जैनी अच्छे नाग- . रिक प्रमाणित होते रहे हैं। किन्तु जैनियों के शासनकाल में कुछ जैन धर्म के विद्वोषियों ने जैन धर्म को इस प्रकार भूठा बदनाम किया कि उस के संबन्ध में अनेक अनर्गल बातों का प्रचार किया गया। इसमें सबसे अधिक अनर्गल प्रचार जैन धर्म की प्राचीनता के विषय में किया गया। आज जैन धर्म की प्राचीनता के सम्बन्ध में इतनी भ्रांतियां हैं १. जैन धर्म शंकराचार्य के बाद चला। २. जैन धर्म बौद्ध धर्म की शाखा है। ३. जैन धर्म को भगवान महावीर स्वामी ने चलाया। । ४. जैन धर्म को भगवान् पार्श्वनाथ ने चलाया।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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