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________________ १५० प्रधानाचार्य श्री मोहनलाल जी कष्ट सहन करने के लिए तय्यार नहीं होता। हनी कारगा अाज धर्म की अवनति हो रही है। नीचे की पंनियों में एक गंमा उदाहरण उपस्थित किया जाता है, जिसमें आचार्य सम्राट सोहनलाल जी ने गृहस्थ में रहते हुए भी स्वधर्मीवल्लता का एक अनुपम आदर्श उपस्थित किया था। हम उदाहरण में यह दिखलाया जावेगा कि उन्होंने किस प्रकार एक माधर्मी माई की सहायता की तथा इस प्रकार उनके सम्पूर्ण परिवार को सुन्दी बनाया। श्रावण मास का समय है। भव्य प्रात्मानों में चारों ओर धार्मिक भावना का अपार उत्साह है। त्यागी मुनिगन स्थान पर विहार करना बंद करके म्बय प्रात्मकल्यागग का सम्पादन करते हुए मुमुक्ष जनों को खुले हाथ ज्ञान दान दे रहे हैं। कोई कोई मुनि महान् तप करते हुए धर्म का गौरव बढ़ा रहे हैं, जिसे देख कर जनता आश्चर्यचकित हो रही है। कोई नवीन मुनि ज्ञानवृद्ध मुनियों से नानदान ले रहे है तो कोई नप गाधन में लीन हैं। कोई साधक सामायिक करता हुआ अपने कलिमल को धो रहा है। ऐसे समय में पसरूर नगर में एक साधारण हवेली मे बैठे एक पति पत्नी आपस में वार्तालाप कर रहे है। यद्यपि हवेली में कोई सजावट नहीं है, किन्तु उसकी सफाई मन को आकर्पित कर रही है। यद्यपि उन दोनों के शरीर पर कोई वहुमूल्य वस्त्राभरण नहीं है, किन्तु उनके पहिनने के ढंग, उनके मकान तथा उनकी गंभीरता को देखकर यह पता चलता है कि कभी यह परिवार भी विशाल ऐश्वर्य तथा वैभव के सुख को भोग चुका है तथा इस समय दरिद्रता की चफी में पिस रहा है। फिन्तु इस दरिद्रता के कारण उनके धार्मिक विचार तथा धार्मिक कार्यों में कोई त्रुटि नहीं आने पाई है। वह प्रतिदिन दोनों
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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