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________________ सर्राफे की दूकान १३६ गए तो लाला गंडामल उनको साथ लेकर एक बार सम्बडियाल गए। सोहनलाल जी ने वहां जाते ही अपने माता पिता के चरणों में मस्तक झुका दिया। इसके बाद लाला गंडा मल बोले "मथुरादास जी! मैंने सोहनलाल को स्कूल से उठा कर अब सर्राफे के कार्य की पूर्ण शिक्षा दे दी है। लड़का न केवल बुद्धिमान् है, वरन् अब यह सत्यनिष्ठ, धार्मिक एवं कुशल व्यापारी भी बन गया है। वास्तव में यह लड़का आपका पुत्ररत्न है।" लाला गंडा मल के मुख से पुत्र की अतीव प्रशंसात्मक गुण गाथा सुन कर माता लक्ष्मीदेवी तथा पिता मथुरादास जी का रोम रोम हर्ष से पुलकित हो उठा। उन्होंने हर्षपूरित गद्गद् वाणी से कहा__"बेटा! हमको तुमसे ऐसी ही आशा थी। हमारे अन्तःकरण से यही ध्वनि निकल रही है कि भविष्य में तुम अपने गुण गरिमा से अपने कुल के कीर्ति को शुक्ल पक्ष के चन्द्रमा के समान बरावर बढ़ाते ही रहो।" अपने पिता के यह शब्द सुन कर सोहनलाल जी ने दोनों हाथ जोड़ कर नम्र वाणी से उत्तर दिया। "पिता जी! यह सब आपके चरणों का ही प्रताप है। माता पिता की दृष्टि में तो पुत्र सदा ऊंचे से ऊंचा ही बना रहता है।" इसके पश्चात् लाला गंडा मल ने मथुरादास जी से पूछा गंडा मल-"शाह जी! सोहनलाल व्यापार कार्य में पूर्ण चतुर बन ही गया है। अस्तु अब इसके विषय में आपका क्या विचार है ?" मथुरादास-अब इस विषय में विचारना क्या ? अब तो
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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