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________________ १२४ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी स्नान कर । जल के द्वारा अन्तरात्मा की शुद्धि नहीं होती। मित्र-मित्र ! तुमने बहुत ही सुन्दर उत्तर दिया। वास्तव में यही पवित्रता है। पुराणों में लिखा है कि प्राचीन काल के ऋषि साठ साठ हजार वर्ष तक तप करते थे। ऐसी अवस्था मे स्नान तो दूर, उनके शरीर पर पक्षी तक अपने घोंसले वना लेते थे। सोहनलाल ! आज तुमने वास्तव में बहुत ही अच्छी बातें बतलाई। क्या तुम हमको भी अपने गुरुओं के दर्शन करा सकते हो? सोहनलाल-क्यों नहीं । तुम बड़ी प्रसन्नता से उनके दर्शन कर सकते हो । जब तुम उनके पास जाकर उनके दर्शन करोगे और उनसे प्रश्न करके धर्म का स्वरूप समझोगे तो तुमको अत्यधिक प्रसन्नता होगी। मित्र-अच्छा सोहनलाल ! तुम हमको अपने साधुओं के दर्शन के लिए कब ले चलोगे ? सोहनलाल-जब कभी यहां आचार्य श्री का आगमन होगा तो मैं आप लोगों को सूचित करके उनके दर्शन कराने आपको अवश्य ले चलूगा। मित्र-क्या उनके आने का कोई समाचार है। सोहनलाल-अभी तो कोई समाचार नहीं है, किन्तु उनका विहार इधर प्रायः हो ही जाता है, जिस से हम लोगों को उनके दर्शनों का लाभ हो जाता है।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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