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________________ १२० प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी सोहनलाल जी के इन वचनों को सुन कर उनका एक अन्य मित्र उनकी ओर संकेत करके वोला "भाई, यह तो नास्तिक हैं । यह ईश्वर को नहीं मानते।" इस पर सोहनलाल जी ने उसको उत्तर दिया मित्र ! तुम से यह किसने कहा कि जैनी लोग ईश्वर को नहीं मानते ? __मित्र-हमारे यहां एक पंडित जी आया करते हैं उन्होंने कहा था। ___ सोहनलाल-मित्र ! मैं तो समझता हूँ कि आपके पंडित जी को जैन धर्म का किंचित्मात्र भी ज्ञान नहीं है। यदि उनको जैन धर्म का लेशमात्र भी परिचय होता तो वह ऐसी बात कभी भी न कहते। मित्र-तो क्या जैनी लोग सचमुच ही ईश्वर को मानते ___ सोहनलाल जैनी लोग ईश्वर को निश्चय से मानते हैं। ईश्वर के अतिरिक्त जैनी लोग पाप, पुण्य, धर्म, अधर्म, स्वर्ग, नरक, मोक्ष, अच्छे कर्मो के अच्छे फल तथा बुरे कर्मो के बुरे फल इन सभी को मानते हैं। इतना ही नहीं, जैनी लोग यहां तक मानते हैं कि यह जीव धर्माचरण करता हुआ अपने पाप कर्मों को नष्ट करके आत्मा से परमात्मा वन जाता है। हां, संकट काल उपस्थित होने पर जैनी लोग परमात्मा को दोष न देकर उसे अपने ही पाप कर्म का फल समझ कर उस पाप को नष्ट करने के लिये दुगने उत्साह से प्रभु भक्ति में जुट जाते हैं। मित्र-अच्छा सोहनलाल ! यह बतलाओ कि जैन लोग वौद्धों में से क्यों पृथक हुए ?
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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