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________________ मामा के यहां निवास १०५ इस प्रकार श्री सोहनलाल जी अपनी पन्द्रह वर्ष की आयु में संवत् १९२१ में सम्बडियाल के स्कूल को छोड़ कर अपने मामा के साथ पसरूर आ गए और वहां के स्कूल में भर्ती होकर पढ़ने लगे। इस समय के पश्चात् पसरूर ही उनका निवास स्थान बन गया। अब वह स्कूल की छुट्टी होने पर ही अपने माता पिता के पास सम्बडियाल जाया करते थे। आपके मामा लाली गंडा मल पसरूर म्युनिसिपैलिटी के प्रधान थे। लाला गंडामल का एक विशेष असाधारण गुण यह था कि वह सच्चे अर्थ में दीनबन्धु थे। जिसका कोई नहीं होता था, उसकी सहायता वह किया करते थे। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने भी यही कहा कि___निसका कोई नहीं है, उसके तुम बन जाओ।" सो यह गुण आपमें पूर्णरूप में विद्यमान था। पसरूर में लाला गंडेमल के अनेक मकान थे। यदि अचानक दो सौ व्यक्ति भी अतिथि रूप में आ जाते तो आपके पास सब प्रकार की इतनी अधिक स्वागत सामग्री थी कि किसी से मांगने को आवश्यकता न रखते हुए वह उनका स्वागत कर सकते थे। लाला गंडामल न केवल पसरूर मे, वरन् स्यालकोट जिले भर मे यहां तक कि पञ्जाब भर मे एक अत्यन्त सम्मानित व्यक्ति माने जाते थे। वह प्रत्येक अपरिचित, रोगी, निर्धन, असहाय अथवा निराश्रित सभी की आशा पूर्ण कर दिया करते थे। एक बार उत्तर प्रदेश का निवासी एक सज्जन व्यक्ति किसी कार्यवश पञ्जाव आया। वह रावलपिंडी से वापिस जाते हुए वजीराबाद में वीमार पड़ गया। ज्वर तो उसको इतने जोर का आया कि वह बेहोश होगया। उसकी बेहोशी की दशा में कोई
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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