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________________ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी नहीं कर सकता। किन्तु न्यायालयों की यह दशा होते हुए भी कुछ व्यक्ति अपनी न्याय वुद्धि द्वारा ऐसा न्याय करते थे कि उनके कार्यों को सुनकर बड़े बड़े न्यायाधीश दांतों तले अंगुली दबा लेते थे। यहां लगभग १० वर्ष पूर्व की एक ऐसी घटना का वर्णन किया जाता है, जिसमें एक नौ वर्ष के बालक ने न्याय के आदर्श को उपस्थित किया था। उस वालक ने विशेष कार्य यह किया कि उसने अपराध के कारण को ढढ कर अपराधी को ही नहीं, वरन् उसके अन्दर वर्तमान अपराध वृत्ति को ही सदा के लिये नष्ट करके उस घर को नरकमय दशो से निकाल कर स्वर्गमय बना दिया। इस प्रकार के बाल न्यायाधीशों की जितनी भी प्रशंसा को जावे थोड़ी है। घटना इस प्रकार है सम्बडियाल में एक मध्यम श्रेणी के गृहस्थ रहते थे, जिनका नाम गुरुदत्ता मल था। जाति से वह अरोड़ा खत्री थे। उनके चार पुत्र थे, जिनमें से दो का विवाह हो चुका था। उनके यहां कटपीस के कपड़े की दूकान होती थी। उस दूकान की आय से उनका कार्य आनन्दपूर्वक चल जाता था। इन गुरुदत्ता मल के सवसे छोटे पुत्र का नाम रामधारी था, जिसका उल्लेख इस ग्रन्थ में पीछे किया जा चुका है और जो हमारे चरित्रनायक श्री सोहन लाल जी के साथ उसी पाठशाला में पढ़ता था। रामधारी को सारे लड़के धारी नाम से पुकारते थे। धारी का स्वभाव मिलनसार तथा चेहरा हँसमुख था। वह सीधा सादा होते हुए भी लिखने पढ़ने में खूब परिश्रम करता था, जिससे सोहनलाल जी के साथ उसकी घनिष्टता हो गई थी, जो बढ़ते २ मित्रता के रूप में परिणत हो गई। एक वार स्कूल लगने पर सब लड़कों के आजाने पर भी रामधारी नहीं आया। बाद में वह दो घंटे बाद स्कूल पहुंचा।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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