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________________ 89 - श्री आदिनाथ भरत बाहुबलिजिन पूजन मम्यक दर्शन में विहीन है ता प्रत पालन में है कष्ट । गज पर चढ ईधन ढोने जैसा दुर्मति होता मति पृष्ट ।। णमोकार के मन्त्र की महिमा अगम अपार । भाव सहित जो ध्यावते हो जाते भव पार ।। इत्याशीर्वाद जायपत्र -* हो श्री णमो अग्हताण, णमो सिद्धाण, णमो आइरियाण णमो उवज्झायाण णमो लोएमन्त्रमाण । श्री आदिनाथ भरत बाहुबलिजिन पूजन स्थापना आदिनाथ प्रभु भरत बाहुबलि स्वामी को सादर वन्दन । पिता पुत्र शिवपुरगामी तीनो को सविनय अभिनन्दन ।। शुद्धज्ञान का आश्रय लेकर निजस्वभाव को किया नमरे । केवल्झान प्रगट कर पाया सहज भाव मे मुक्ति सदन ।। निज चैतन्य राज को ध्याया पापो का परिहार किया । निज स्वभाव से मुक्त हुए प्रभु सबने जयजयकार किया ।। आदिनाथ प्रभु भरत बाहुबलि की पूजन कर हर्षाऊँ। निजस्वरुप की प्राप्ति करूं मै नित नूतन मगल गाऊँ ।। ॐ ह्री श्री आदिनाथ भरत बाहुबलि जिनेन्द्र अत्र अवतर सवौषट आहवाहन ॐ ह्री श्री आदिनाथ भरत बाहुबलि जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ उठ स्थापनम् ॐ ह्री श्री आदिनाथ भरत बाहुबलिजिनेन्द्र अत्र मम मत्रि हितो भवभव वषट् मन्त्रि धिकरणम। भेद ज्ञान की प्राप्ति हेतु मे करूँ आत्मा का निर्णय । सम्यक जल की भेट चढाऊँ हो जाऊँ मै अमर अभय ।। आदिनाथ प्रभु भरत बाहुबलि की पूजन कर हर्षाऊँ। नित स्वरूप की प्राप्ति करूँ मै नित नूतन मगल गाऊँ ॥१॥ ॐ ह्रीं श्री आदिनाथ भरत बाहुबलि जिनेन्द्राय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जल नि ।
SR No.010738
Book TitleJain Punjanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherRupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala
Publication Year1992
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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