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________________ ५३ श्री जिनेन्द्र पंचकल्याणक पूजन चौरासी के चक्कर से बचना है तो निज ध्यान करो । नव तत्वो की श्रद्धापूर्वक स्वपर भेद विज्ञान करो ।। मलयागिरि चंदन अर्पित कर भव का आतप हरण करूँ। सम्यक ज्ञान प्राप्त कर मैं भी मोक्ष मार्ग को ग्रहण करूँ ।। जिन ।।२।। ॐ ह्री श्री जिनेन्द्रपचकल्याणकेभ्यो ससारतापविनाशनाय चन्दन नि अक्षत से अक्षय पद पाऊँभव सागर दुख हरण करूँ। सम्यक चारित्र के प्रभाव से मोक्ष मार्ग को गृहण करूँ ॥ जिन ॥३॥ ॐ ह्री श्री जिनेन्द्र पचकल्याणकेभ्यो अक्षयपद प्राप्ताय अक्षत नि । सुन्दर पुष्प सुगन्धित लाकर काम शत्रु मद हरण करूँ। सम्यक तप की महाशक्ति से मोक्षमार्ग को ग्रहण करूँ ।। जिन ।।४।। ॐ ह्री श्री जिनेन्द्र पचकल्याणकेभ्यो कामबाणविध्वशनाय पुष्प नि । शुभ नैवेद्य भेटकर स्वामी क्षुधा व्याधि को हरण करूँ। शुद्ध ध्यान निज के प्रताप से मोक्ष मार्ग को ग्रहण करूँ जिन ॥५॥ ऊँही श्री जिनेन्द्र पचकल्याणके यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य नि । तमका नाशक दीप जलाकर मोह तिमिर को हरण करूँ। निज अतर आलोकित करके मोक्ष मार्ग को ग्रहण करूँ।। जिन ।।६।। ॐ ह्री श्री जिनेन्द्र पचकल्याणकेभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीप नि । ध्यान अग्नि मे धूप डालकर अष्ट कर्म को गृहण करूँ ॥ - शक्ल ध्यान की प्राप्ति हेतु मै मोक्षमार्ग को गृहण करूँ ।। जिन ।।७।। ॐ ह्री श्री जिनेन्द्र पचक्ल्याणकेभ्यो अष्टकर्मविर्वसनाय धूप नि । शुद्ध भाव फल लेकर स्वामी पाप पुण्य को हरण करूँ। परम मोक्षपद पाने को मै मोक्ष मार्ग को ग्रहण करूँ ।। जिन ।।८।। ॐ ह्री श्री जिनेन्द्र पचकल्याणकेभ्यो मोक्षफलप्राप्ताय फल नि । वसु विधि अर्घ चढ़ाकर मैं अष्टम वसुधा को वरण करूँ। निज अनर्थ पद प्राप्ति हेतु मैं मोक्षमार्ग को ग्रहण करूँ जिन ॥९॥ ॐ ह्री श्री जिनेन्द्र पचकल्याणकेभ्यो अनर्धपद प्राप्ताय अयं नि ।
SR No.010738
Book TitleJain Punjanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherRupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala
Publication Year1992
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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