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________________ जैन पूजाँजलि सम्यक दर्शन अगर तुझे पाना है तो कर तत्वाभ्यास । निजस्वरुप का निर्णय करले आत्म तत्व का कर विश्वास । । जम्बूद्वीप धातकी खण्ड अरु पुष्करार्द्ध में क्षेत्र विदेह। पचभरत अरु पंच ऐरावत तीर्थक्षेत्र बन्दै घर नेह २॥ तीन लोक के सकल तीर्थ निर्वाण क्षेत्र सविनय वन्दूँ। सिद्ध अनन्तानन्त विराजित सिद्धशिला नित प्रति वर्दू ।।३।। अष्टापद कैलाशशिखर पर ऋषभदेव के पद वन्,। बालि महाबालि मुनि नागकुमार आदि मुनिवर वन्, ॥४॥ श्री सम्मेदशिखर पर्वत पर बीस तीर्थकर वन्,। अजितनाथ सभव, अभिनन्दन, सुमति, पद्म प्रभु को वन्दूँ।।५।। श्री सुपार्श्व चन्द्रप्रभु स्वामी, पुष्पदन्त, शीतल वन्यूँ । प्रभु श्रेयास, विमल, अनन्त जिन, धर्म, शान्ति, कुन्थु वन्दूँ।।६।। श्री अर,मल्लि, मुनिसुव्रत, नभिजिन, पार्श्वनाथ, प्रभु को वन्दै। मुनि अनत निर्वाण गये जो, उनके चरणाम्बुज वन्दूँ।७।। चम्पापुर मे वासुपूज्य तीर्थकर को सादर वन्दै। श्री मदारगिरि से मुक्त हुए मुनियों के पद वन्, ।।८।। श्री गिरनार नेमि प्रभु शबु प्रदुम्न अनिरुद्ध आदि वन्दूँ । कोटि बहात्तर सात शतक मुनि मुक्त हुए उनको वन्दूँ ॥९॥ पावापुर मे महावीर अन्तिम तीर्थंकर को वन्दूँ। क्षेत्र गुणावा गौतमस्वामी के पद कमलो को वन्दू ॥१०॥ तुन्गीगिरि श्री रामचन्द्र, हनुमान गवय, गवाक्ष वन्दूँ। महानील, सुग्रीव, नील मुनि निन्यानवे कोटि वन्दूँ।।११।। शत्रु न्जय पर आठ कोटि मुनियों के चरणाम्बुज वन्दूँ। भीम युधिष्ठिर अर्जुन पाडव और द्रविड राजा वन्दूँ ॥१२॥ श्री गजपथ शैल पर मैं बलभद्र सप्त के पद वर्दै । आठ कोटि मुनि मुक्ति गए हैं भाव सहित उनको वन्दै ।।१३।। सोनागिरि पर नंग अनग कुमार आदि मुनि को वन्दूँ । साढे पाँच कोटि ऋषियों की यह निर्वाण भूपि वन्, ।।१४।।
SR No.010738
Book TitleJain Punjanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherRupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala
Publication Year1992
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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