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________________ - - श्री नित्य नियम पूजन रुचि अनुयायी वीर्य काम करता है जैसी मति होती ।। पर भावों की रुचि स्यागे तो उरमें निज परिणति होती । । मंगलमय नमिनाथ जिनेश्वर मंगल नेमिनाथ योगेश । मंगलमय श्री पार्श्वनाथ प्रभु, मगल वर्धमान तीर्थेश ॥७॥ मगलमय अरिहंत महाप्रभु, मंगल सर्व सिद्ध लोकेश । मगलमय आचार्य श्री जय मगल उपाध्याय ज्ञानेश।।८।। मगलमय श्री सर्वसाधुगण, मंगल जिनवाणी उपदेश । मगलमय सीमन्धर आदिक, विद्यमान जिन बीस परेश ।।९।। मगलमय त्रैलोक्य जिनालय, मंगल जिन प्रतिमा भव्येश । मगलमय त्रिकाल चौबीसी, मगल समवशरण सविशेष ।।१०।। मगल पचमेरु जिन मन्दिर, मगल नन्दीश्वर द्वीपेश । मंगल सोलह कारण दशलक्षण, रत्नत्रय व्रत भव्येशा॥११॥ मंगल सहस्त्र कूट चैत्यालय मगल मानस्तम्भ हमेश । मगलमय केवलि श्रुतकेवलि मगल ऋद्धिधारि विद्येश ।।१२।। पगलमय पाँचों कल्याणक, मगल जिन शासन उद्देश । मगलमय निर्वाण भूमि, मगलमय अतिशय क्षेत्र विशेष।।१३।। सर्व सिद्धि मगल के दाता हरो अमगल हे विश्वेश । जब तक सिद्ध स्वपद ना पाऊँ तब तक पूर्जे हे ब्रह्मेश ।।१४।। श्री नित्य नियम पूजन जय जय देव शास्त्र गुरु तीनो, मगलदाता प्रभु वन्दन । पच परम परमेष्ठी प्रभु के चरणो को मैं करूँ नमन ।। विद्यमान 'तीर्थंकर बीस विदेह क्षेत्र के करूँ नमन । तीन लोक के कृत्रिम अकृत्रिम जिन चैत्यालय को वदन ।। परमोत्कृष्ट अनत गुण सहित सर्व सिद्ध प्रभु को वन्दन । वृषभादिक श्री वीर जिनेश्वर तीर्थंकर सब करूँ नमन ।। निज भावों की अष्ट द्रव्य ले सविनय नाथ करूँ पूजन । श्रद्धा पूर्वक भक्तिभाव से करता हूँ जिनपद अर्चन ॥ ॐ ह्रीं श्री सर्वजिनचरणाग्रेषु पुष्पाजलि क्षिपामि ।
SR No.010738
Book TitleJain Punjanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherRupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala
Publication Year1992
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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