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________________ १८५ अलमाल की गहराई में माकर निज दर्शन पाओं ।। ही मीसाखतष्ठीदिने मी अभिनन्दनाय जिनेन्द्राय गर्भमंगल प्राप्तान माघ शुक्ल दश को स्वामी नगर अयोध्या जन्म हुआ। नपति स्वयंवर के प्रांगण में हर्ष हुआ आनन्द हुआ।। एक सहल अष्ट कलशों से गिरि सुमेरु अभिषेक हुआ। हे अभिनन्दन पांडुकवन मे इन्द्रशचीसुर नृत्य हुआ ।।२।। ॐ ह्रीं माषशुक्ल द्वादरया जन्म मगल प्राप्ताय श्रीअभिनंदननाथ जिनेंद्राय अयं नि । नश्वर मेघों का परिवर्तन लखकर प्रभु वैराग्य हुआ । अग्रोद्यान सरस तरु नीचे वस्त्राभूषण त्याग हुआ । माघ शुक्ल द्वादश लौकातिक देवों का जयनाद हुआ । हे अभिनन्दन पंचमहाव्रत धारे दूर प्रमाद हुआ ॥३॥ ॐ हीं माघशुक्लद्वादश्या तपोमगलम प्राप्ताय श्री अभिनंदननाथजिनेन्द्राय अयं नि । पौष शुक्ल चतुदर्शी को निर्मल केवलज्ञान हुआ । समवशरण की रचनाकर धनपति को अतिबहमान हुआ । द्वादश सभा बीच दिव्यध्वनि खिरी दिव्य उपदेश हुआ । हे अभिनन्दन भव्यजनों को प्राप्त मुक्ति सदेश हुआ I४ ॐ हीं पौषशुक्ल चतुर्दश्या केवलज्ञानप्राप्ताय अभिनदननाधजिनेंद्राय अयं नि । प्रतिमायोग किया जब धारण पावन गिरिसम्मेद हुआ । शुभ बैशाख शुक्ल षष्टम आनन्दकूट से मोक्ष हुआ ।। चार प्रकार देव सब आये हर्षित इन्द्र महान हुआ । हे अभिनन्दननाथ जिनेश्वर परम मोक्ष कल्याण हुआ ॥५॥ ॐ ही बैशाख शुक्ल पट्या मोक्षमंगल प्राप्ताय अभिनंदननायजिनेन्द्राय अन्य नि. जयमाला । कर्म भूमि के चौथे तीर्थकर जिनपति अभिनन्दन नाथ । देव आपकी पूजन करके मैं अनाथ भी हुआ सनाथ ॥
SR No.010738
Book TitleJain Punjanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherRupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala
Publication Year1992
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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