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________________ जैन पूजान्जलि एवं चतुर्विशति तीर्थंकर विधान ॐ नम सिद्धेभ्य अभिषेक पाठ मैं परम पुज्य जिनेन्द्र प्रभु को भाव से वन्दन करूँ। मन वचन काय, त्रियोग पूर्वक शीश चरणो मे धरूँ ॥१॥ सर्वज्ञ केवलज्ञानधारी की सुछवि उर मे धरूँ। निग्रन्र्थ पावन वीतराग महान की जय उच्च ॥२॥ उज्जवल दिगम्बर वेश दर्शन कर ह्रदय आनन्द भरूं। अति विनय पूर्व नमन करके सफल यह नरभव करूँ।।३।। मै शद्ध जल के कलश प्रभु के पूज्य मस्तक पर करूँ। जल धार देकर हर्ष से अभिषेक प्रभु जी का करूँ।।४।। मैं न्हवन प्रभु का भाव से कर सकल भवपातक हरूँ। प्रभु चरणकमल पखारकर सम्यक्त्व की सम्पत्ति वरूँ ।।५।। जिनेन्द्र-अभिषेक-स्तुति मैने प्रभु के चरण पखारे । जनम, जनम के सचित पातक तत्क्षण ही निरवारे ।।१।। प्रासुक जल के कलश श्री जिन प्रतिमा ऊपर ढारे । वीतराग अरिहत देव के गूजे, जय जयकारे ॥२॥ चरणाम्बुज स्पर्श करत ही छाये हर्ष अपारे। पावन तन, मन, नयन भये सब दूर भये अधियारे ॥३॥
SR No.010738
Book TitleJain Punjanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherRupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala
Publication Year1992
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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