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________________ श्री महावीर जयन्ती पूजन सग पर का छुट जार जब स्वयं का भान हो । धूब अचल अनुपम स्वमसि पा स्वयं ही भगवान हो ।। ॐ ह्री श्री चैत्र शुक्ल त्रयोदश्या जन्ममंगलमाप्त श्रीमहावीर जिनेन्द्राम कामबाण विश्वसनाय पुष्प घट रस नैवेद्य अनूठे भाव पूर्ण लेकर आऊँ। निज परणति मे रमण करूँ मैं पूर्णतृप्त प्रभु बन जाऊँ ।। महा. ।।५।। ॐ ह्री श्री चैत्र शुक्ल प्रयोदश्या जन्ममंगलप्राप्त श्रीमाहवीर जिनेन्द्राय सुधारोग विनाशनाय नैवेचं नि। स्वर्ण थाल मे रत्नदीप निज भावों को लेकर आऊँ। केवलज्ञान प्रकाश सूर्य को ज्योति किरण निजप्रगटाऊँ महा ॥६॥ ॐ ह्री श्री चैत्रशुक्ल त्रयोदश्या जन्ममगलप्राप्त श्रीमहावीर जिनेन्द्राय मोहाधकार विनाशनाय दीपं नि । दशगन्धों की दिव्य धूप मै शुद्ध भाव की ही लाऊँ । दश धर्मों की परम शक्ति से अष्ट कर्म रज विघटाऊँ। । महा ।।७।। ॐ ह्री श्री चैत्र शुक्ल त्रयोदश्या जन्ममंगलप्राप्त श्रीमहावीर जिनेन्द्राय अष्ट कर्म दहनाय धूप नि स्वाहा। विविध भाति के सुर फल प्रभु परम भावना मय लाऊँ। महामोक्ष फल पाऊँ स्वामी फिर न लौट भव मे आऊँ। । महा ॥८॥ ॐ ह्री श्री चैत्र शुक्ल प्रयोदश्या जन्ममगलप्राप्त श्रीमहावीर जिनेन्द्राय मोक्ष फल प्राप्तये फल नि । जल फलादि वसु द्रव्य अर्घ शुभ ज्ञानभाव का ही लाऊँ। साम्य भाव चारित्र धर्म पा निज अनर्थ पदवी पाऊँ। । महा ॥९॥ जयमाला जन्म दिवस श्री वीर का ओ मगल गान । आत्म ज्ञान की शक्ति से होता निज कल्याण ॥१॥ इस अखिल विश्व मे जब प्रभु हिंसा का राज्य रहा था । तब सत्य शाति सुख विलय कर पापों का स्रोत बहा था ॥२॥ ले ओट धर्म की पापी अन्याय पाप करते अति ।। वे धर्म बताते थे "वैदिक हिंसा हिंसा न भवति ॥३॥
SR No.010738
Book TitleJain Punjanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherRupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala
Publication Year1992
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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