SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३४ जैन पूजाजलि जिय कब तक उलझेगा संसार विजल्पो में 1 कितने भव बीत चुके सकल्प विकल्पों में । । कार्तिक कृष्ण आमावस्या को शुद्ध भाव मन से भर लूँ । दीपमालिका पर्व मनाऊँ भव भव के बन्धन हर लूँ ॥ ज्ञान सूर्य का चिर प्रकाश ले रत्नत्रय पथ पर बढ लूँ । पर भावो का राग तोड़कर निज स्वभाव मे मै अड़लूँ || ॐ ह्रीं कार्तिककृष्ण अमावस्याया मोक्ष मंगल प्राप्त श्री वर्धमान जिनेन्द्र अत्र अवतर अवतर सवौषट् अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ अत्रमम् सन्निहितो भव भव वषट् । चिदानन्द चैतन्य अनाकुल निज स्वभाव मय जल भरलूँ । जन्म मरण का चक्र मिटाऊ भव भव की पीडा हरलूँ || दीपावलि के पुण्य दिवस पर वर्धमान पूजना कर लूँ । महावीर अतिवीर वीर सन्मति प्रभु को वन्दन कर लूँ ।। १ ।। ॐ ह्री कार्तिक कृष्ण अमावश्या मोक्ष मगल प्राप्त श्री वर्धमान जिनेन्द्र जन्मजरा मृत्युविनाशनाय जल। अमल अखड अतुल अविनाशी निज चन्दन उर में धरलूँ । चारो गति का ताप मिटाऊं निज पचमगति आदर लूँ ।। दीपा ॥२॥ ॐ ही कार्तिक कृष्ण अमावस्या मोक्ष मगल प्राप्त श्री वर्धमान जिनेन्द्राय ससारताप विनाशनाय चन्दन | अजर अमर अक्षय अविकल अनुपम अक्षत पद उरमे धरलूँ । भवसागर तर मुक्तिवधू से मै पावन परिणय कर लूँ ॥ दीपा ॥३॥ ॐ ही कार्तिक कृष्ण अमावस्या मोक्ष मगल प्राप्त श्री वर्धमान जिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षत नि । रूप गध रस स्पर्श रहित निज शुद्ध पुष्प मन मे भर लूँ । कामवाण की व्यथा नाशकर मै निष्काम रूप धरलूँ || दीपा ||४|| ॐ ह्री कार्तिक कृष्ण अमावस्या मोक्ष मगल प्राप्त श्री वर्धमान जिनेन्द्राय कामबाण विध्वसनाय पुष्प नि आत्म शक्ति परिपूर्ण शुद्ध नैवेद्य भाव उर मे धर लूँ । चिर अतृप्ति का रागनाशकरसहल तृप्तनिजपदवरलूँ || दीपा ॥५॥ ॐ ह्री कार्तिक कृष्ण अमावस्याया मोक्षमगल प्राप्त श्री वर्धमान जिनेन्द्राय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्य नि ।
SR No.010738
Book TitleJain Punjanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherRupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala
Publication Year1992
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy