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________________ १२५ - - - श्री लिस्यमह पूजन शायक स्वभाव के सन्मुख हो पुरुषार्थ जीव जब करता है । जड़ कमों की बाबा तक को असमुहुर्त में हरता है ।। श्रीजिन सहस्त्रनाम को ध्याऊँ जिनवाणी को करूं नमन । पंचमेरु के अस्सी जिन चैत्यालय को सादर वन्दन ।।५।। अष्टम अप श्री नन्दीश्वर बावन चैत्यालय वन्दन । भव्यभावना सोलहकारण भाऊ ऐसा करूँ यतन ॥६॥ उत्तम क्षमा आदि दशलक्षणधर्म सदा ही करूँ नमन । सम्यक दर्शन ज्ञान चरितमय रत्नत्रय व्रत करूँ ग्रहण ।।७।। वृषभादिक श्री वीरजिनेश्वर के चरणों का नित अर्चन । गणधर वृषभसेन गौतम को विघ्नविनाश हेतु बन्दन ॥८॥ बाहुबली जी भरत चक्रवर्ती अनन्तवीर्य बन्दन । पंच बालयति शान्ति कुन्थु अर चक्रेश्वर जिनवरवदन ॥९॥ भूत भविष्यत वर्तमान की तीनो चौबीसी वन्दन । सहस्त्रकूट चैत्यालय वन्दे मानस्तम्भ जिन समवशरण १०॥ गर्भजन्मतप ज्ञान मोक्ष पाचों कल्याणक को बदन । तीर्थंकर की जन्म भूमियों को मैं सादर करूँ नमन ।।११।। तीर्थ अयोध्या श्रावस्ती कौशाम्बीपुर काशी वन्दन । चन्द्रपुरी काकदी पहिलपुर हस्तिनापुरी वन्दन ॥१२॥ सिंहपुरी कपिला रत्नपुरि मिथिला शौर्यपुरी वन्दन । राजगृही चम्पापुर कुण्डलपुर वैशाली करूँ नमन ।।१३।। जिन प्रभु समवशरण, पच कल्याणक, अतिशय क्षेत्रनमन । वीतराग निम्रन्थ मुनीश्वर श्री जिनवाणी को वंदन ॥१४॥ तीर्थकर निर्वाण क्षेत्र अरु सिद्ध क्षेत्र को बन्दन । चम्पा पावा उर्जयंत सम्मेदशिखर कैलाश नमन ॥१५॥ शत्रुजय पावागढ़ सरंगागिरि तुंगीगिरि वन्दन । कुन्धलगिरि गजपंथ चूलगिरि सोनागिरि को कस्बयन ॥१६॥
SR No.010738
Book TitleJain Punjanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherRupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala
Publication Year1992
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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