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________________ - - न सख्या - - क्रमाक नाम पृष्ठ पृष्ठ क्रमांक नाम सख्या ५६ श्री पुष्पदन्त जिन पूजन २०२ ७२ श्री तीर्थकर गणाधर वलय २७३ पूजन ५७ श्री शीतलनाथ जिन पूजन २०७ ७३ श्री तीर्थकर निर्वाण श्रेत्र २७७ ५८ श्री श्रेयासनाथ जिन पूजन २११ ५९ श्री वासुपूज्य नाथ जिन पूजन २१५ ७४ श्री त्रिकाल चौबीस जिन २८० ६. श्री विमलनाथ जिन पूजन २१९ पूजन ६१ श्री अनन्तनाथ जिन पूजन २२३ श्री तीर्थकर निर्वाण क्षेत्र ६२ श्री धर्मनाथ जिन पूजन २२८ ६३ श्री शान्तिनाथ जिन पूजन २३४ पूजन विधान ६४ श्री कुन्थुनाथ जिन पूजन २३८ ७५ श्री अष्टापद कैलाश सिद्ध २८४ क्षेत्र पूजन ६५ श्री अरनाथ जिन पूजन । २४२ ७६ श्री सम्मेदशिखर सिद्ध क्षेत्र २८७ ६६ श्री मल्लिनाथ जिन पूजन २४६ पूजन ६७ श्री मुनिसुव्रतनाथ जिन पूजन २५० ७७ श्री चम्पापुर सिद्धक्षेत्र पूजन २९१ ६८ श्री नमिनाथ जिन पूजन २५४ ७८ श्री गिरनारसिद्ध क्षेत्र पूजन २९४ ६९ श्री नेमिनाथ जिन पूजन २५८ ७९ श्री पावापुरसिद्ध क्षेत्र पूजन २९७ ७० श्री पार्श्वनाथ जिन पूजन २६२ । ८० महाअर्ध्य, शान्तिपाठ ३०१ ७१ श्री महावीर जिन पूजन क्षमापना पाठ, भजन भजन बड़े भाग्य से आऐ हैं हम जिनवर के दरबार में बड़े भाग्य से आये हैं हम जिनवर के दरबार में, हम अनादि से दुखिया व्याकुल चारो गति में भटक रहे निज स्वरूप समझे बिन स्वामी भव अटवी मे अटक रहे भेद ज्ञान बिन पडे हुये हैं पर के सोच विचार में ।। बड़े भाग्य ।।१।। महा पुण्य सयोग मिला तो शरण आपकी पाई है। आज आपके दर्शन करके निज की महिमा आई है भव सागर से पार करो प्रभु हमको अब की बार मे ।। बड़े भाग्य ।।२।। दर्शन ज्ञान चरित्र शील तप के आभूषण पहिनादा चार अनन्त चतुष्टय की शोभा से स्वामी मजवा दो । अष्ट स्वगुण प्रगटाऊस्वामी फिर न बहू मझधार मे ।। बड़े भाग्य ।।३।।
SR No.010738
Book TitleJain Punjanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherRupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala
Publication Year1992
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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