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________________ (१४) माई, आटल तारे अवश्य करवा जेषु छे -- ।१ देहमा विचार करनार बैठो छे ते दहथी भिन्न छ? " ते सुखी छ के दुःखी ? ए सभारी ले २ दुख लागशे ज, अने दुखना कारणो पण तने दृष्टि गोचर थशे, तेम छता कदापि न थाय तो मारा० कोई भागने वाची जा, एटले सिद्ध थशे ते टाळवा माटे जे उपाय छ ते एटलो ज के तेयो बाह्याभ्यतर रहित पवु ३ रहित थवाय छ, और दशा अनुभवार्य छ ए प्रतिना ' पूर्वक कहु छु ४ ते साधन माटे सर्वसगपरित्यागी थवानी आवश्यकता छ निपथ सद्गुरुना चरणमा जईने पडवु योग्य छ ५ जेवा भावधी पडाय तेवा भावी सव काळ रहेवा माटेनी विचारणा प्रथम करी ले जो तने पूवकर्म बळवान लागता होय तो अत्यागी, देशत्यागी रहोने पण ते वस्तुने विसारीश नही । ६ प्रथम गमे तेम करी तु तारु जीवन जाण जाणवु शा माटे के भविष्यसमाधि पवा भत्यारे अप्रमादो थव
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
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