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________________ १५ परमभक्तिची स्तुति करनार प्रत्ये पण जेने राग नथी अने परमद्वेषयी परिषह-उपसर्ग करनार प्रत्ये पण जेने द्वेष नधी, ते पुरुपरूप भगवानने वारंवार नमस्कार ! १६ जेने कोई पण प्रत्ये रागद्वेप रह्या नयी ते महात्माने वारंवार नमस्कार ! १७ वीतराग पुरुषना समागम विना, उपासना विना, आ जीवने मुमुक्षुता केम उत्पन्न थाय ? सम्यक्ज्ञान क्याथी थाय? सम्यकदर्शन क्याथी थाय ? सम्यक्चारित्र क्याथी थाय ? केमके ए त्रणे वस्तु अन्य स्थानके होती नथी. १ प्रमादने लोवे आत्मा मळेलु स्वरूप भूली जाय छे २ जे जे काळे जे जे करवान छे तेने सदा उपयोगमा , राख्या रहो ३ क्रमे करीने पछी तेनी सिद्धि करो. ४ अल्प आहार, अल्प विहार, अल्प निद्रा, नियमित वाचा, नियमित काया अने अनुकूळ स्थान ए मनने वश करवाना उत्तम साधनो छे
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
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