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________________ ९९ आरमानो धर्म आत्मामा न छ १०० मारा पर सघळा सरळ भावयी हुकम चलायो तो हु । राजी छु १०१ हु ससारथी लेश पण रागसयुक्त नयी छता तेने ज भोग छ, माई में त्याग्यु नपी । १०२ निर्विकारी दशाथी मने एकलो रहेवा दो १०३ महावीरे जे ज्ञानयी आ जगतने जोय छे ते शान सव आत्मामा छ, पण माविर्भाव फरवु जाईए । १०४ बहु छकी जाओ तो पण महावीरनो आमा तोडशो नही गमे तेवी शुका थाय छो पण मारी वती वीरने निःशक गणजो १०५ पाश्वनाथ स्वामीनु ध्यान योगीओए अवश्य स्मर जोईए छे नि -ए नागनी छत्रछाया वळानो पार्वनाथ ओर हतो! १०६ गजसुकुमारनी क्षमा अने राजेमतो रहनेमीने बोधे छे ते बोध मने प्राप्त थामो १०७ भोग भोगवता सुधी (ज्या सुधी ते कर्म छे त्या सुधी) मने योग ज प्राप्त रहो!
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
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