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________________ ४६ एकातिक कथन कथनार ज्ञानी न कही शकाय, ४७ शुक्ल अंत करण विना मारा कथनने कोण दाद आपशे? ४८ ज्ञातपुत्र भगवानना कयननी ज बलिहारी छे ४९ हु तमारी मूर्खता पर हसु छु के-नयी जाणता गुप्त चमत्कारने छता गुरुपद प्राप्त करवा मारी पासे का पचारो? ५० अहो ! मने तो कृतघ्नी ज मळता जणाय छे, मा केवी विचित्रता छ । ५१ मारा पर कोई राग करो तेथी हु राजी नथी, परतु कंटाळो आपशो तो हु स्तब्ध थई जईश अने ए मने पोसाशे पण नही. ५२ हुं कहुं छु एम कोई करशो ? मारूं कहेलुं सघळु मान्य राखशो ? मारा कहेला घाकडे धाकड पण अगीकृत करशो ? हा होय तो ज हे सत्पुरुष । तुं मारी इच्छा करजे. ५३ संसारी जीवोए पोताना लाभने माटे द्रव्यरूपे मने हसतो रमतो मनुष्य लीलामय कर्यो। ५४ देवदेवीनी तुषमानताने शु करीशु ? जगतनी तुष मानताने शु करीशु ? तुषमानता सत्पुरुषनी इच्छो.
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
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