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________________ ५४६ प्रत्येप गृह शाति विराम राषयां ५४७ उपरेशनने समान मापु ५४८ अनत गुणधमपी भरेला सृष्टि छ एम मानु ५४९ कोई पाउ तत्त्व यडे परी दुलियामांयी दुम जो एम मानु ५५० दुप भने स्वद भ्रमणा छ ५५१ माणस चाहे ते करायो ५५२ शौर्य, बुद्धि इ० नो सुसद उपयोग परु ५५३ कोई काळे मने दु सो मानु नहीं ५५४ सृष्टिना दुम प्राणन यह ५५५ सर्व साध्य मनोरष धारण कर ५५६ प्रत्येक तत्वज्ञानीओने परमेश्वर मातृ ५५७ प्रत्यकनु गणतत्त्व ग्रहण करु ५५८ प्रत्येक्ना गुणने प्रफुल्लित करु ५५९ वुटुबन स्वर्ग बनाय ५६० सृष्टिन स्वर्ग बनायु तो कुटुदन मोक्ष बनायु ५६१ तत्त्वा सुष्टिो सुखी करता हु स्थाप अपु ५६२ सृष्टिना प्रत्येक (-) गुणनी वृद्धि मक ५६३ सृष्टिना दाखल यता सुधी पाप पुण्य छे एम मान
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
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