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________________ ३९४ पूर्वित भोग मभाग नही (मु० गु०) ३९५ अयोग्य विद्या साधु नही (मु० गृ० ७० उ०) ३९६ बोचू पण नहीं ३९७ वण सपनी वस्तु ल र नहीं ३९८ नाहू नहीं (मु०) ३९९ दातण करु नहीं ४०० ससारमुख चाहु नही ४०१ नीति विना ससार भोगवु नही (गृ०) ४०० प्रसिद्ध रीते कुटिरताथी भोग वणवु नही (ग०) ४०३ विरहाय गयु नही (मु० गृ० प्र०) ४०४ अयोग्य उपमा आपु नहीं (मु० गृ० ० उ०) ४०५ स्वाप माटे क्रोध का नहीं (मु० गृ०) ४०६ वादया प्राप्त करु नही (उ०) ४०७ अपवादयी सेद करु नही ४०८ धर्मद्रन्यना उपयोग करी श नहीं (गृ०) ४०९ दावे-धममा पाळु (गृ०) ५१० सयसग परित्याग करु (परमहस) ४११ तारो बोलो मारो घम विसारु नही (मर्व) ४१२ स्वप्नानद खेद करू नहीं
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
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