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________________ ९७ भले तारी आजीविका जेटलु तु प्राप्त करतो हो, परतु निस्पाधिमय होय तो उपाधिमय पेलु राजनुन्व इच्छी तारो आजनो दिवस अपवित्र करीग नही. ९८ कोईए तने कडबु कयन कह्य होय ते ववतमा सहन__ शीलता-निरुपयोगी पण, ९९ दिवसनी भूल माटे रात्रे हसजे, परतु तेवू हसवु फरीथी न थाय ते लक्षित रावजे. १०० आजे कई बुद्धिप्रभाव वधार्यो होय, आत्मिक शक्ति उजवाळी होय, पवित्र कृत्वनी वृद्धि करी होय तो ते,१०१ अयोग्य रीते आजे तारी कोई शक्तिको उपयोग करीश नही,-मर्यादालोपनथी करवो पडे तो पापभीर रहेजे १०२ सरळता ए धर्मनु वीजस्वरूप छे. प्रज्ञाए करी __ सरळता सेवाई होय तो आजनो दिवस सर्वोत्तम छे. १०३ वाई, राजपत्नी हो के दीनजनपत्नी हो, परंतु मने तेनी कई दरकार नथी मर्यादाथो वर्तती मे तो शु पण पवित्र ज्ञानीओए प्रगसी छे.
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
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