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________________ २०३ छे, मात्र पूर्व उत्पन्न ययेला एवा कर्मोना उदयने लोधे जेमनो विचरवा भादि क्रिया छे, अज्ञानी करता जेनी वाणी प्रत्यक्ष जुदो पडे छ, भने पटदशनना तात्पयने जाणे छे ते सद्गुरुना उत्तम लथणो छ ११ ज्या सुधी जीवने पूर्वकाळे थई गयेला एवा जिननी बात पर ज लग रहा कर, अने तनो उपकार कह्या करे, अने जेयी प्रत्यक्ष भात्मभ्रातिनु समाधान थाय एवा सद्गुरुनो समागम प्राप्त थयो होय तेमा परोक्ष जिनोना वचन करता माटो उपकार समायो छे तेम जे न जाणे तेन आत्मविचार उत्सान न पाय १२ सद्गुरुना उपदेश विना जिननु स्वरूप समजाय नही, अने स्वरूप समजाया विना उपकार शो थाय ? जा सद्गुरुउपदरी जिननु स्वरुप समन तो समजनारनो आत्मा परिणाम जिननी दशाने पामे १३ जे जिनागमादि आमाना होवापणानो तथा परलोमादिना होवापणाना उपग करवावाळा शास्त्रो छे, स पग या प्रत्यय सद्गुणो जोग न होय त्या सुपात्र जीवन आधाररूप छ पण सद्गुरु गमान से प्रातिना एक कहा न दायाय
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
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