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________________ ते ते भोग्य विशेषना, स्थानक द्रव्य स्वभाव, गहन वात छे गिष्य आ, कही मक्षेपे साव ८६ (५) शंका-शिष्य उवाच कर्ता भोक्ता जीव हो, पण तेनो नहि मोक्ष; वीत्यो काळ अनत पण, वर्तमान के दोष ८७ शुभ करे फळ भोगवे, देवादि गतिमाय, अशुभ करे नरकादि फळ, कर्म रहित न क्याय ८८ (५) समाधान-सद्गुरु उवाच जेम शुभाशुभ कर्मपद, जाण्या सफळ प्रमाण, तेम निवृत्ति सफळता, माटे मोक्ष सुजाण. ८९ वीत्यो काळ अनत ते, कर्म शुभाशुभ भाव; तेह शुभाशुभ छेदता, उपजे मोक्ष स्वभाव. ९० देहादिक संयोगनो, आत्यतिक वियोग; सिद्ध मोक्ष शाश्वत पदे, निज अनत सुखभोग. ९१ (६) शंका-शिष्य उवाच होय कदापि मोक्षपद, नहि अविरोध उपाय, कर्मो काळ अनतना, शाथी छेद्या जाय ? ९२
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
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