SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - Rad जा ज्या गोल गह स्या या मे में जानरे, भामार्ग एन एह. ८ गे मारनगने, व्यागी दई निगा; पाने में गायन, नो मन. ९ सामान गमागमा, विनर उपयोग अपूर्य घrt परमथुन, मगर लक्षण गोय. १० प्रत्यक्ष मदगुरु गम नही, परोन मिग उपचार; एवो पक्ष घया दिना, कने न आत्मविचार. ११ मद्गुग्ना उपदेग वण, समजाय न जिनरप, समज्या वण उपकारमो ममन्ये जिनस्वरूप. १२ मात्मादि अस्तिन्वना, नेह निम्पा पास्त; प्रत्यक्ष मद्गुरु योग नहि, त्या भावार सुपात्र. १३ अथवा सद्गुगए काधा, जे अवगाहन कान, ते ते नित्य विचारवा, कारी मतातर त्याज १४ रोके जीव स्वच्छद तो, पामे अवश्य नाक्षा पाम्या एम अनत छ, भास्यु जिन निर्दोष १५ प्रत्यक्ष सद्गुरु योगथी, स्वच्छद ते रोकाय, अन्य उपाय कर्या थकी, प्राये वमणो थाय. १९
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy