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________________ बघ मोक्ष सयोगयी, ज्या लग आत्म अमान, पण नहि त्याग स्वभावना, भाखे जिन भगवान ४ घर्ते बघ प्रसगमा, ते निजपद अमान, पण जडता नहि मात्मने, ए सिद्धात प्रमाण ५ महे अरूपी रूपीने, ए अचरजनी वात, जीव बधन जाणे नहीं, येवो जिन सिद्धात ६ प्रथम देहष्टि हतो तेथा भास्यो देह, हवे दृष्टि थई आत्ममा, गयो दहयो नेह ७ जह चेतन सयोग आ, खाण अनादि अनत, कोई न पर्ता तहनो, भासे जिन भगवत - ८ मूळ द्रव्य उत्पन्न पहि, नहीं ना पण तेम, अनुभवयी ते सिट छ भाखे जिनयर एम ९ होय तहनो ना नहि, नही तह नहि होय, • एव समय से सो समय भेद अवस्था जोय १० (२) परम पुरुष प्रभु सद्गुरु, परम पान सुखपाम, जेणे आप्प भान निज, सेन मदा प्रणाम १ राळज, मा सुद ८, १९४७
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
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