SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१३) अमूल्य तस्यविचार (हरिगीत छद) बहु पुण्यरेरा पुजयो गुभ दह मानवनो मळ्यो , तोपे अरे! भवचक्रनो माटो नहि एको टळयो, सुम्म प्राप्त करता सुख टळे छ ऐश एसो रहो, क्षण क्षण भयंकर भावमरण का महो राची रहो? १ लामी अने अधिकार यधतां, यध्य ते तो पहो? कुतुब के परिवारथी, वधवापणु ए नय ग्रहो, वधवापणु समारनु नरहने हारी जवा, एनो विचार नहीं अहोहो ! एक पळ वमने हवो !!॥ २ निप सुख निर्दोष मान, ल्यो गमे त्याथी भले, ए दिव्य शक्तिमान जैयो जीरथी नीकळे, परवस्तुमा नहि मूषवो, एनी दया मुजो रही, ए त्यागवा सिद्धात के पश्चातूदुम त सुन नहो ३ हकोण छु? क्याथी थयो ?श स्वरूप छे मारु खरु ? कोना सरपे वळगणा छ ? राखु के ए परहरू ? '
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy