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________________ 4 १७ आजे जो तु दुपातमा दोरातो हो तो मरणने म्मर १८ तारा दुसमुसना धनावोनी नोष आजे कोन दुःख आपवा तत्पर चाय तो भारी जा. १९ राजा हो के रण हो-गमे ते हो, परन्तु मा विचार विचारी सदाचार भणी आवजो के मा काथाना पुद्गल योटा वसतने माटे मात्र साडारण हाथ भूमि मागनार छे. २० तु राजा हो तो फिकर नही, पण प्रमाद न कर, कारण नीचमा नीच, अ-'ममा अधम, व्यभिचारलो, गर्भपातनो, निर्वगनो, चण्डालनो, कसाईनो अने वेश्यानो, एवो कण तु खाय छे तो पछी ? २१ प्रजाना दुःख, अन्याय, कर एने तपासी जई माजे ओछा कर तु पण हे राजा ! काळने घेर आवलो पल्पो छे २२ वकील हो तो एथी अर्ण विचारने मनन करो जजे २३ श्रीमत हो तो पैसाना उपयोगने विचारजे रळवानु कारण आजे शोधीने कहेजे २४ घान्यादिकमा व्यापारथी थती असत्य हिंसा संभारी न्यायसंपन्न व्यापारमा आजे तारु चित्त खेंच.
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
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