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________________ १०६ ते पंचविपयादि मावनी निवृत्ति मर्वया करवान जीवनु बळ न नालत होय त्यारे, क्रमेक्रमे, दे देशे तेनो त्याग करवो घटे, परिग्रह तया भोगोपभोगना पदार्थनो अल्प परिचय करवो घटे. एम करवायी अनुक्रमे ते दोष मोळा पटे, अने आययभक्ति दढ घायः तथा ज्ञानीना वचनोनु आत्मामा परिणाम पई तीवनानदया प्रगटी जीवन्मुक्त थाय जीव कोईक वार आवी वातनो विचार करे, तेथी अनादि अभ्यामनु बळ घटव कठण पडे, पण दिन दिन प्रत्ये, प्रमगे-प्रसगे मने प्रवृत्ति प्रवृत्तिए फरो फरी विचार करे, तो अनादि अभ्यामनं बळ घटी, अपूर्व अभ्यासना सिद्धि थई सुलभ एवो आश्रयभक्तिमार्ग सिद्ध धाय मवई, फागण वद ७, रवि, १९५१ - (३१) जे कषाय परिणामयी अनत मसारनो सबध थाय ते कपाय परिणामने जिनप्रवचनमा 'अनतानवधी' सजा कहीं छे जे कपायमा तन्मयपणे अप्रगस्त (माठा) भावे नावापयोगे आत्मानी प्रवृत्ति छे, त्या 'अनतानुवघी'नो सभव
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
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