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________________ ४ क्षण क्षण जतां अनतकाळ व्यतीत थयो, छता सिद्धि थई नही. ५ सफळजन्य एक्के बनाव ताराथी जो न बन्यो होय तो फरी फरीने शरमा ६ अघटित कृत्यो थया होय तो गरमाईने मन, वचन, कायाना योगथी ते न करवानी प्रतिज्ञा ले ७ जो तुं स्वतत्र होय तो संसारसमागमे तारा आजना दिवमना नीचे प्रमाणे भाग पाड :(१) १ प्रहरभक्तिकर्तव्य (२) १ प्रहर-धर्मकर्तव्य. (३) १ प्रहर---आहारप्रयोजन (४) १ प्रहर-विद्याप्रयोजन (५) २ प्रहर-निद्रा. (६) २ प्रहर-ससारप्रयोजन. ८प्रहर ८ जो तुं त्यागी होय तो त्वचा वगरनी वनितानु स्वरूप विचारीने ससार भणी दृष्टि करजे, ९ जो तने धर्मनुं अस्तित्व अनुकूळ न आवतुं होय तो नीचे कहु छु ते विचारी जजे :
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
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