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________________ (५१) ___॥ संस्कार प्रबोध संभूत मनुभूतार्थ विषय तदित्याकार सवेदनं स्मरणम् ॥ इस लक्षणमें तीन बातोंका समावेश किया गया है। एक तो स्मरण ज्ञान किससे पैदा होताहै, और उस्का विषय कौन है, तथा उसका कैसा आकार है । सो तीनोंही बातोंका निर्णय सूनकारने इसी मूनमें कियाहै। सस्कार ज्ञानसे यह पैदा है । अनुभवित अर्थ इसका विषय है, और वो ऐसा इस्का आकार है । इससे यह मतलब निकलता है कि पूर्व कालम जो चीज देखी गइ है उत्तर कालम उस चीजको याद करने पर स्मरण ज्ञान होता है । इस लिये चौद्ध मतमं इस ज्ञानका होना अशक्य है । क्योंकि पूर्व कालम जिसने प्रत्यक्ष तया पदार्थ को देखा था वेतो नष्ट होगया । बतलाइये, फिर स्मरमज्ञान कौन करेगा? ऐसा तो होही नहीं सस्ता कि पूर्व कालम जोया उस्ने प्रत्यक्ष किया और उत्तर कालम जो होगा सो म्मरण करेगा । यत. देवदत्तो कोड प्रत्यक्षपणे पदार्थ देख लिया, उस्का स्मरण देवदत्चही कर सकेगा नकि यज्ञदत्त । अगर एक की देसीहुइ पातका दूसरा स्मरण कर सकता तो फिर हमारे गुरु श्रीमद्विजयमल मुरीश्वरजी ने सिद्धाचलजीको प्रत्यक्ष देसाई, में स्मरण क्यों नहीं कर सत्ता क्योंकि
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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