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________________ ३३१) अर्थात् जिनकी वाक्कलासे खुश हुवा शाह-अक्षरी घोपणातक करता हुआ सरिजीके उपदेशसे मृतधन-अर्थात् शारीगमा धन अपने कोपागारमें लेना छोड दिया लिखा यदुपदेशवशेन मुट दधम् । निखिल मर वासिजने निजे । प्रतधन च करच सुजीनिआ। भिषम कबर भपति रत्यजत् ।। और पजापर जोजो उग्रकर (टेक्स ) बैठायेथे ये भी आपके उपदेशसे ओडटिया लिखा है कि नृपतिरेप तमुग्रकर त्यजन् ॥ अर्थात् गजा उग्र करतक छोडहिये । और मनुजय मभति जेन लीयार फरमान पर लिखदियोक पावत्चदिवा करौ पर्वत उन तीर्थोपर मो. दखल न करने पायेगा लिरवाह - दत्त साहस पीर हीरविनयश्रीमरि राजापुरा । यन्ट्रीशाहि अकररेण धरणीशक्रेण तत्पीतये ॥ तच्चकऽग्विलमपालमतिना यत्सा जगत्साधिक। तत्पर फरमाणसमनध मादिशोव्यानशे ॥
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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