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________________ ( ३२८ ) कर्त्ताचहर्ता निजकर्मजन्य,वैचैव्यविश्वस्यन कश्चिदास्ति । वन्ध्यात्मजन्मेव तदस्तिभावोऽसन्नेव चित्ते प्रतिभासतेतत् ॥ १५० ॥ परमेश्वर जगत् निर्माण करके क्षय करना है तब उसका बनानाही फुजूलहै. न कोई पैदा करनेवाला है न क्षय करनेवाला. मुजे यूं नजर आताहै बंध्या स्त्रीके पुत्रके मुताबिक इस दुनियाका वनानेवाला कोई नहीं है. इन कलामोंसे अबुल फजल बड़ा खुशी हुआ. बादशाही दरवारमें अकबरसे मुलाकात करने गये और कुशलक्षेम होनेपर शाहने पूछा आपने सफर घोड़ेपर या रथ, हाथीपर की. जवाब दिश, पा पियादा तब शाहको बडा ताआज्जुव मालूम हुआ वाद मूरिजीने तमाम धर्यतत्व शाहको समझाये जोकि सत्य और असत्यमें भेद नहीं करता और इन्द्रिय सुखोंमेंही आराम मानताहै वो धर्मरूपी कस्तूरीको छोडकर मिट्टी खरीद करता है। और धर्मरूपी अमृत छोडकर कातिल विष खाताहै कहा है:यदेव जन्तुविषयाभिलाषुको दधाति धर्मे न मनोमनागपि हीर सौभाग्यकाव्यसमें ॥१४॥ अर्थात् जो प्राणी विषयोंका अभिलाषी होताहै वह प्राणी मनको धर्ममें कभी धारण नहीं करता.
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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