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________________ ( ३१९ ) उपसंहार मियपाठकगणे - इस कम्पित कहानीके जरीये जो आपको तीन तत्वोका सक्षेपसे सार यतायासो आपने गुर समझ लीया होगा प्रिय शिरपुत्रों-जो मनुष्य इस समान नर दहको माप्त कर धर्म नहीं करता है व मृखो मुल्य है देखीये मुक्ति मुलापली कलाश्री सोममभाचार्यजी क्या फरमात है - शोक तधरतममन्त्रिमाने, प्रोन्मूल्यकल्पद्रमम् ॥ चिन्तारत्नमयाकावशाल स्विकुर्वते तेजडा ॥ विशियविरदगिरिन्छ, सहरा कीगति तेरामभ ।। चेलमपरिहत्यपर्मममा. बाति भोगाशया अप-यो म यस मान हुये वो छोटकर भोगरी आशाके वाले नौटते फिन है ये मानो अपने हमेंसे कम रसको उपासर घमा दरल बीते है, तया गिरी समान हस्तीमगार सलों सरीते हैं
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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