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________________ ( ३७ ) • स्थापना-जितनी जगेमें आत्म प्रदेशका धन अवगा हर हो हेसो ___३ द्रव्य-अरिहत भगवानका ज्ञेय, भव्य तथा तदव्य तिरिक्त शरीर द्रव्य सिद्ध कहे जाते है ४ मार-मोक्षावस्था इस प्रसार हर चीजपर चारों निक्षेपे उत्तरसते हैं गरजकी अर्हन्त कथित धर्ममे बहुत सक्ष्मता रक्खी गइ है और यही प्रमाण उनके सर्वज्ञताका है इसके अतिरिक्त धर्म दो प्रकारकेभी फरमाये गये है जिन __ का बहुत सक्षपसे वर्णन करताहु साधु-सर्व विरति होते है उनके पचमहारत रुप उत्कृष्ट धम होता है व पचमहात पहिले गुरुके स्वरुपमे कयन किये गये है श्रावको पारादत्त होते है सो समयके सकोचसे अभी कह नही सक्ता हे श्रोतागणों इस प्रकार श्री अरिहत कथित धर्म सर्व भारसे सिद है क्यों यमदत्तनी क्या समझे. ___ यज्ञ-हे कृपानिधे, हे करुणा सागर आपके अमृतमय वच नोंसे मुझे अलानद उत्पन हुवा है. और इतना असर हुवा
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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