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________________ ( ३०१ ) को राग द्वेपे हैही नही, और जो राग द्वेपी होगा वो सर्वज्ञ पा हो नहीं सक्ता, जय सर्वज्ञ नही तो सर्वशक्तिमानभी नही, गरज कि जो इश्वर है वह कमी किसी काममें हानी या नफा नहीं करेगा अप रही यह पात किटनको भजनेसे क्या ___ फायदा' सो इसके उत्तरमे तो तुम सुदही ख्याल करलो कि यदि किसी गुणवान पुरुप (जो कि कालको प्राप्त हो गया हो उस) का नाम ले तो उसके गुण जरूर याद आवगे जा गुण याद आवेंगे तो उनका अनुप्तरणभी करना जरूर मोरा आवेगा वस तो जगत प्रभुका नामस्मरण करनेसे भला उनके गुणोका अनुसरण क्यो नही हो सकेगा ? अवश्य होगाही तो फिर निश्चय हुवा कि उनके नाममें ही अनत शक्तिया है तदतिरिक्त हमारा ध्यान निश्चल करनेके पारते प्रभु प्रतिमाभी मोजूद है। यज्ञ-हे सार क्या कहते हो, क्या प्रतिमासेंभी भागोंकी वृद्धि होसक्ती है ? मूरि-भाई यज्ञदत्त तुम तो अभीतक मूर्खी मूर्ख ही रहे. तुमनों इतनाभी मालुम नही फि बगैर प्रतिमाके इस ससार भरत कार्य नहीं चल सक्ता, देसो भत्यक्ष नीर पचा यदि सीम्पने लगे तो वगेर आकृतिके अक्षर सीग्व ही नहीं सक्ता. इतना ही नही बल्के इशियार होनेपर भी का
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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