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________________ ( २८४) एक महत्वका प्रश्न उपस्थित होता है कि इस समय पृथ्वीपर कई ऐसे देश हैं, जहांके अधिकांश लोगोंकी ईश्वरकी भक्ति करनी तो दूर रही; पर उसके होनेहीमें चाहिये वैसा विश्वास नहीं है, और भारतवासी हजारों वरपासे उसके साथ सम्बंध रखते हुए चले आये हैं, तो फिर इस देशकी वर्तमान स्थिति उन देशोंकी स्थितिसे अच्छी होनेकी अपेक्षा खराव क्यों दिखाई देती है ? विचार करनेसें इस प्रश्नका ठीक उत्तर समझमें आ सकता है । अपन किसीभी कामका आरंभ करते हैं तो जैसे २ उस कामके सम्बंध अपना प्रयत्न होता जाता है वैसे २ अपन उस नयत्नके सारासारकी और दृष्टि रखते हैं. यदि अपने काम करनेका ढंग चाहिये वैसा न हुआ तो किया हुआ सब परिश्रम निरर्थक जाता है । कार्यके पूरे होनेका सारा आधार प्रयत्नकी सार्थकता ही पर रहता है। इस लिये कोईभी कार्य क्यों नहो, पहिले उसे सब प्रकारसे भली भांति समझ लेना और फिर आरंभ करना उचित है । अब सोचना चाहिये कि अपन कोट्यावधि भक्ति करनेवाले भारतवासियों में ऐसे कितने क निकलेंगे जो ईश्वरके गुण, कर्म, स्वभाव और स्वरूप को यथोचित समझकर उसकी भक्ति करनेकी और लगे हो ? इन कोट्यावधियोंमेंसे ऐसे कितनेक होंगे जो ईश्वरके सम्बधर्म कई दिनो अथवा वरषोंसे नित्य जो कुछ तो भी खटपट
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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