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________________ ' ( २७८ ) . जिसे किसी क्षण मेंभी दुःख नहीं व्यापता है; और जिसको, चाहे वीमारीकी दशामें, चाहे आरोग्यता, चाहे विपत्तिमें चाहे शोकमें जब कभी सेवा अर्थात् भक्ति की जाय, अवश्य ही सुख प्राप्त होता है । यह पहिले ही. निश्चय हो चुका है कि वह अखंड सुख स्वरुप केवल परमेश्वर है ! इससे यही सारांश निकलता है कि सच्चे सुखके अर्थ परमेश्वरकी भक्ति करनाही आवश्यक है। ____ यदि अपन पूर्णज्ञानकी इच्छा करते हैं तो सम्पूर्ण ज्ञानवानकी भक्ति करना योग्य है । एक या दो विषयोंके ज्ञान वाले शिक्षक कि जो अपन सेवा करें तो अपनेको एक या दो विषयोंका ही ज्ञान प्राप्त हो सकता है, और बहुतसे छोटे बड़े विषयोंके जानने वालेकी सेवा करें तो वे बहुतसे विषय सीख सकते हैं, परन्तु सब विषयोंका यथार्थ ज्ञान तो केवल एक परमेश्वरही में हैं; इसलिये यथार्थ ज्ञानकी प्राप्ति के अर्थ इसीकी भक्ति करनेके सिवाय अन्य कोई उपाय नहीं है। इसी प्रकार यदि कोई निर्दोप होना चाहता है तो उसे चाहिये कि सर्व गुण युक्त ईस्वरके गुणानुवाद करके तिसके सदृश होनेकी इच्छा करता हुआ अपने दोषो को दूर करे तो वह एक दिन निर्दोष होकर सांसारिक जन्म मरणसें रहित अविनाशी हो सकता है इतना विवेचन करनेसे यही सिद्ध होता है कि सम्पूर्ण स्वतंत्रता, सच्चा सुख पूर्ण
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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