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________________ (२६) और न वे यह समझते है कि ऐसी दशामें हमारे जीवनको कितनी हानि पहुच रही है उल्टे वे इस प्रकारके कुतर्क उठाया करते हैं कि सुबहमें उटते ही अपने काम धधे किंवा विद्याभ्यास डोडकर ईश्वर • करते रहना व्यर्थ झझट है। उनकी समझसे ईश्वरस्मरण एक प्रकारका भ्रातिकारक व्यवहार है । वे कहा करते है कि जो निकम्में हों वे भले ही ऐसे २ व्यर्थ वातें तथा कार्य किया करें, पर कामकाज वालोंके तो इनमें अपना समय न सोना चाहिये । उनकी इन सारी बातों परसे यही जान पडता है कि ईश्वरका मानना और उसकी भक्ति करना, वे अज्ञानी और मूर्ख लोगोंका काम समझते है | उन लोगों के, मनकी ऐसी विपरीत स्थिति देख कर ही इस विषय पर सक्षेपमे कुछ लिखनेका विचार हुआ है। निस प्रकार जल वायुके मिले पिना अपना एक क्षण मात्रभी जीना कठिन हो जाता है, उसी प्रकार ईश्वरके स्मरण किये बिना अपने को सच्चे मुखका अश मानभी अनुभर होना अशक्य है। जैसे बिना खाने पीने के अपनी देह निर्बल होती जाती है, वैसेही ईश्वर विमुख होनेसे अपनी अघोगति होती चली जाती है । यह स्मूल गरीर जेसे खाद्य पदार्थोके आश्रित हो रहा है, वैसेहो इसके अन्दर जो सूक्ष्म चैतन्यशक्तिजोगात्मा उमका आधार केवल अखड शक्ति स्वरूप ईश्वरकी
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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