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________________ ( २५९ ) इश्वरभक्ति __ सारा ससार भली भाति जानता है कि यह भारतवर्ष कुछ ऐसा वैसा देश नहीं है । पूर्वमें, इसने अपनी विद्या, उदि और पराक्रमके परसें जो कुछ कर दिखलाया उसका ठीक भेद तक आज कलके सभ्य कहलाने वाले किसीभी देशने नहीं पाया है। केवल सासारिक वातों ही नहीं वरन पारलौ. किक रिपयों में भी अद्वितीय पुरुषार्थ बतलानेका यह जैसा दाना रखता है वैसा कोइभी अन्य देश साहस नहीं करसकता है। आहा वहभी एक समय था जब यही भारत, भू मडलके समस्त देशीका शिरोमणि माना जाता था । परन्तु कालकी गति विचित्र है, जिसके प्रभावसे पहिले जो इसें पुज्य गर जानकर सम्मान देते थे. वही आज उसे असभ्य रहकर आदेश करते है । शोचनेका स्थान है कि उसकी यह दशा कैसी पलट गई । इस दुर्दशाका सम्पूर्ण श्रेय हम केवल आलस्यही को दिये देते ह जो अपिधारे समान कई बातोंको अ पने पोछे २ लेकर आता है । ऐसा कोइमी देखने में नहीं आया जो थाल स्यके फदेमें पड़कर किसी जशीभी दुसी न हुाहो, तर फिर विचारे भारतकी इस समय ऐसी स्थितिहो तो टसमें आश्चर्य क्या है ? अभी तर आस्म, अविवादिके बढने जानेसे इस तह
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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