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________________ ( २५२) सिखलाते हैं, चाहे वे दस बीस हजार श्लोकभी मुखपाट कर लेवे, निरर्थक है. सर्व शालाओंकी व्यवस्था एक धोरणसें होना वाहिये वैसी नहीं है. व्यवहारिक ज्ञानभी हमें यथायोग्य नहीं मिलता. अपनी कोम प्रायः सर्व व्यापारी वर्गमे हैं. हमें व्यवहारिक शिक्षाके अतिरिक्त, व्यापार संबंधी शिक्षा मिलनी चाहिये कि अमुक २ व्यापार अपने करने योग्य है अमुक २ व्यापारमें कम व्यवसाय और लाभ अधिक है, अमुक २ वस्तु अमुक देशोंमें पैदा होती हैं और अमुक देशोमे खपती है उनोंके व्यापार किस उंगसें किस २ मोसममें किये जाते हैं इत्यादि. ___ आजकल अन्यकोम जैसे कि खोजे, मेमन, बोहरे, पारसी, आदि व्यापार के कामोंये बहुत आगेवान हुइ हैं और हमारी कोम जो खास व्यापारी कोमके नामसे प्रसिद्ध है अविद्या और आलस्यके कारण पूर्ण पछात पड़रही है देशाटन करनेमें हमारी कोम सबसे पडात है इस लिये हमें सर्वसे प्रथम व्यापारी शिक्षाक तर्फ विशेष ध्यान देना चाहिये. प० इसके लिये दया नबंध करना उचित है ? उ० इसके लिये एक बड़ा भारी फंड करके एक जैन
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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