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________________ (२४' ) ठित पुरुषार्थ सापनेमें कम उपयोगी होताहै, कारण उनोंकों विद्या ययन करते समय कई प्रकारकी चूटीय जिनका कि रिचा आगे आपके दृष्टीगोचर होगा रहजानसे सन्यज्ञान की माप्ती नहीं हो सक्ती और हमारे निवधका विषयमी इन त्रुटियोंके विपयमें वर्णन कर उनके उपाय गोधकर लिखनेका है। विद्याभ्यास करना यह जैसा पुरपको हितकारी है वैसाहो स्त्रीकोभी है यहा प्रथम हमें फिश्चित स्त्रीशिलाके विपयमें लिसना उपयोगी मालुम होता है, काग्ग पुरुप नातिकी उत्पत्ती स्त्री द्वाराही है अतएर वी भूमी रूप है वास्ते प्रथम भूमीशुद्धी की आवश्यकता है यहि भूमि शुद्ध है तो उसमें वोये हुवे थीजका दृसभी फलदायी उत्पन्न होने की सभावना है, पास्ते खी शिक्षानी प्रथमावश्यकता है. वो शिक्षाका प्रचार किसी प्रकार से नवीन नहीं है परन्तु इस अवमपिणी कालमें प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगाने अपनी पुत्री नामी और मुदरीको अठारह प्रकारसी रोपि और चोसट प्रकारकी कलाओंका अभ्यास करवाया तरसे प्रचलित है अपने जैन-समाजमें असख्य विदुपी सतीय होगई है जिनोंकी उय प्रकारको शिक्षाके विपपमें उनोंके चरित्रोंपरसे न सक्त है.
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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