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________________ ( २१९) ॥ श्रीजिनायनमः ॥ शिक्षा सुधार मङ्गलाचरणम् श्रीमदीर जिनस्य पद्मादय निर्गम्यते गौतमम् । गगावर्तन मेत्यया प्रविभिदे मिथ्यात्व वैताध्यकम् ।। उत्पत्तीस्थिति सहति त्रिपथगा ज्ञानाबुधा वृद्धीगा । सामे कर्म मलहरत्व विकलम् श्रीद्वादशागीनदी ॥ १ ॥ प्राणी मात्र इस ससारमें चउराशीलक्ष जीवायोनिके अदर अनादि कालमे कर्म वश पर्यटन कर रहे हैं तदनुसार अपनभी पर्यटन करते २ अनत पुण्यराशीके उदयसे इस महान् दुष्पाप्य चिन्तामणी सदश मनुष्य जन्मको प्राप्त हुवे हैं तो इस जन्मको सार्थक करना यह हमारा परम कर्तव्य है इसको मार्थक करनेके निमित्त धर्म • अर्थ और ३ काम इन तीनों पुरपायाको साधनेका ज्ञानी महात्माओंने फरमाया है अतएव हम दन तीना पुरपार्थोके सिद्ध करने के उपाय योजना अती आवश्यकीय है. इसका प्रथम उपाय ज्ञान सपादन करनेका शास्त्रकाराने फरमाया दै, कारण ज्ञान रिना मनुप्य मानको सर्व कार्य असा र है ज्ञाा यह एप मप्यके वास्ते परमोपयोगी अमुल्य
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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