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________________ (११) नास्त्यात्मा अयन्ता प्रत्यक्षत्वात् । यदत्यन्ता प्रत्यक्षं तनास्ति, यथा खपुष्प । यच्चास्ति तत् प्रत्यक्षेण गृह्यते एव यथाघट' ।मतला-अत्यन्त अप्रत्यक्ष होनेसे आत्मा नहीं है। क्योंकिजोअमत्यक्ष है वो चीजही नहीं है। जैसे आकाशका फूल। जो चीज प्रत्यक्ष है वो दिखलाइभी देती है जैसे घडा । परमाणुभी अप्रत्यक्ष है लेकिन वे जर घटादिक कार्यमें परिणत होते है तर दिखलाइ देते है। मगर आत्मा किसी सूरतमें प्रत्यक्ष नहीं होता, इसलिये अत्यता प्रत्यक्ष यह विशेषण दिया गया है । इससे परमाणु व्यभिचार नहीं आता है। ____ अनुमानसेभी आत्मा सिद्ध नहीं होता ! क्योंकि " लिङ्ग लिहि सरन्य स्मरण पूर्वक हनुमान " मतप साध्य साधनके सधया स्मरण ज्ञान जर होता है ताही अनुमान होता है। जैसे पेश्तर महानस (ग्सोडा) में आग और बुआमा सपथ अन्य व्यतिरेकनाली व्याप्निसे प्रत्यक्ष देखेगा कि ठीक है। नहा धूम होता है वहा आग जरुर होती है, और जहा आग नहीं होती वहा धुआ व्याप्ति ज्ञान होनेके बाद किसी उपरनमे या पहाडसी कदरामें आकाशको अवलपन करती हुइ धृम लेखाको देखकर पूर्व ह (पहले देखा हुआ) आग प्रभाके सरथको याद करता है, कि जहां जहा मैंने धूमाको देखाया वहा वहा आगभी होती थी जैसे कि रसोडेमें। यहापर भी धुआ मालूम होता है इस लिये आग जरुर होगी। इस तरह
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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