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________________ २ (२२८.), ___ गुण होते हैं वे आचार्य, व पच्चीस गुणवाले उपाध्याय व सत्ताईस गुणवाले साधु पदविसे सुशोभित होते हैं. इन समस्त गुंणोको इस स्थानपर बतानेसे लेख बड़ा होजानेका और दूसरी आवश्यक बात न लिखे जानेका भय है; अतएव साधु के सत्ताईस गुण संक्षेप्शः बताये जाते हैं (१) एक आत्म स्वरूप जानने वाले ( २) दुविध धर्मापसारक (३) रत्न त्रीकके बताने वाले (४) चार कसायनिवारक (५) पंच महाव्रत धारक (६) छ:काय पालने वाले (७) सप्तभय निवारक ( ८) अष्ट कमाको जीतने वाले (९) नव विध ब्रह्म गुप्त पालने वाले (१०) दशविध जति धर्मके धारक (११) ग्यारह श्रावककी पडिमा व्रत कराने वाले (१२) वारहव्रत श्रावकको उचराने वाले (१३ ) तेरह काठियाजीपक (१४) चौदह पुर्व विद्याके उपदेशक (१५) पन्द्रह भेदके ज्ञाता (१६) सोलह परिसह सहन करने वाले (१७) सतरह प्रकारके संयम पालने वाले (१८) अठारह दाप निवारक ( १९) उनीस काउस्सग्गके दोष निवारक (२०) वीस स्थानक आराधक (२१) इक्कीस श्रावकके गुण जानने वाले (२२) वाईस परिसह जीपक (२३) तेईस विषय निवारक (२४) चौविस जिन आणाधारी ( २५ ) पच्चीस भावना भावक (२६) छब्बिस दशकल्प व्यवहारके धारक (२७) सत्ताईस मुनिगुण संयुक्त ऐसें
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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