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________________ ( २२३ ) ॥ ॐ नम सिद्धेभ्य ॥ जैनशब्दका महत्व प्रथम पट __जैन" शब्द कहतेही चित्त कैसा प्रफुलित होजाता है पानो सूर्यके उदयसे कमर खिल गयाहो, अहा । यह सुदर और शुभ शब्द रिसने स्पन्न किया और इसका ऐसा म भाव क्यों हुआ' वास्तवमें आधुनिक समयके समान प्राचीन काल में मीठी वात और फीके पकवान नहीये, प्राचीन कालमें जिस रस्तुरा जैसा गुण होताथा वैसाहो उसका नाम रखा भाताया वर्तमान समयानुसार, जैसे नाम तो रखा दी नदयाल और क्षणभरमै निरापराधी पशुओंका माण लेडालते है, नाम रखा नयनाख और आखके अधे, अतएव आज इस शमा सञ्चा महल बताते हैं ___जैन । धर्मफे योग्य नौन व्यक्ति होसक्ति है और जो जगतमं सवा सर्वोत्तम मुक्तिदाता धर्म है, उसका नाम रिसन "जैन " धर्म रखा इस बातकी प्रथम आवश्यक्ताहै, जैन धर्मका प्रथम प्रचार. भरम जनमो अवर स ससारकों द्रव्यार्थि न्ययकि अपेका नानि न त यदि नित्य और पर्यायाधिक न्ययकि
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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