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________________ (२०३) पूर्वाचार्योंके जीवनचरित्र ( सझाय ) का अनुकरण करनेके लिये जो समाय कही जाती उस पर व्यान नही देकर पडिक्कमणा जल्दी खतम हो जानेकी इच्छामें लगा रहता है इस तरह मनकी कुविकल्प जारों में फसा हुवा मनुष्य आधे घटे= में पडिकमणा खलास करके अपनी आत्मासा उद्धार हुवा माने वह भूल करता है। पडिमणेका खास उमेश यह है कि पिये हुरे पाप पर निरीक्षण करना अत करणसे पश्चाताप कर पुन ऐसे दुष्कृत्य नही करनेका विचार कर निरधार करना यह खास आवश्यक क्रियाका हेतु है वाचक वृद ? खास हेतु समझनेके शिवाय ऐसा मत गौचना कि शुद्ध भावसे और मनकी एराप्रतासे क्रिया न हो तो पिलमुल करना ही नही चलो उल्लत टी मगर गाखानुकल और शुद्ध करनेका अभ्यास करते जाना है मुशो। जिस परत धमनियामें व्यानारूड होते हैं उस परत यह मन अनेक स्थल व्यापारमे घरमें पुन परिवार में और दुम्मन सेगा भरा उरा करनेमें लग जाता है हाथमें मारा मुहसे रामराम और पेटमें लरी करनेकी दानत ऐसी धर्मानुष्ठानकी क्रियाके परत रखनेको समय हो जाता है ऐसे दुराचारी पाखडीग विश्वास करना अनुचित है प्रिय आत्मवधुवर्य ? ॐमार आदि जाप करो, तपश्चर्या
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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