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________________ ( १९९) अपना गुजरान करते हैं, उसके घरमें मृत्यु होनेसे जीमा रूपी देही पावमे पडनेसें जो दुःख सहन करना पड़ता है वह तो एक परमेश्वरही जानता होंगा।। इममें जातिके अग्रसरोंसे नम्रता पूर्वक मेरी प्रार्थना है कि, जो अपनी जाति मे निकम्में पैमे उडाते हो, और आपकी जातिके गरीबोंकी दया हो तो कृपाकर मृत्युके बाद नुकता ( यह रजके ममय हर्प) तुरन्तही बन्द करना चाहिये इसमे आपको हजारों गरीव जाति वालोंको निभा लेनेकी आशीस मिलेगी। श्री सरका दाम कस्तुरचन्द गादिया
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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